सावन बरसे तरसे दिल...कुछ पुरानी यादों के नशे में (2025)

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फिर शाम-ए-तन्हाई जागी, फिर याद तुम आ रहे हो…
फिर जां निकलने लगी है, फिर मुझको तड़पा रहे हो…
इस दिल में यादों के मेले हैं, तुम बिन बहुत हम अकेले हैं…

शाम की हल्की बारिश, दिलकश मौसम, गरमा-गरम पकौड़े और ये गीत… इससे बेहतर क्या हो सकता है…

सावन बरसे तरसे दिल...कुछ पुरानी यादों के नशे में (1)

दफ्तर से निकला तो बस के इंतजार में खड़ा था। पास में ही एक छोटी-सी दुकान थी, पकौड़े छन रहे थे और लोग पकौड़े खाने के लिए भीड़ लगाए हुए थे। घर के बाहर पकौड़े या कुछ तला हुआ खाने से मैं परहेज ही करता हूँ, लेकिन आज खुद को रोक नहीं सका। दस रुपये प्लेट प्याज-पकौड़े ले ही लिए आखिर… बारिश के मौसम में गरमा-गरम पकौड़ों का स्वाद कैसा होता है, ये तो आप सबको बताने की जरूरत नहीं। 🙂 उसी दुकान में एफएम पर तुम बिन फिल्म का यह गीत “तुम बिन जिया जाए कैसे” बज रहा था। दिल तो बिल्कुल नॉस्टैल्जिया हो गया। 🙂

बैंगलोर की वोल्वो बस से आने-जाने का एक फायदा यह है कि उसकी बड़ी-बड़ी शीशे वाली बंद खिड़कियाँ, जो बारिश में बारिश की बूंदों से सजी हुई रहती हैं, उन पर चेहरा टिकाकर मैं पता नहीं किन अनजाने ख्यालों में खो जाया करता हूँ। फिर कब शेशाद्रिपुरम पार हुआ, कब मल्लेश्वरम, कब सदाशिव नगर… कुछ पता नहीं चलता। मेरा स्टॉप जब आया, तब अचानक से नींद टूटी, ख्यालों की दुनिया से बाहर निकला और बस से नीचे उतरा।

बस से उतरा तो मेरे सीनियर मिल गए चाय की दुकान के सामने। शायद आज सबने जैसे मेरा दिल जीतने की शर्त लगा रखी हो। उन मसालेदार और लाजवाब पकौड़ों का स्वाद अभी मुँह से गया भी नहीं था कि चाय भी लाजवाब बना दी इस कमबख्त राघवेन्द्र बेकरी ने। बोलना पड़ा राघवेन्द्र भैया से, “भैया, आज की चाय मस्त पिलाई आपने। चार रुपये के बजाय पाँच रुपये ले लीजिए, दिल खुश कर दिया आपने।” 🙂 उसने भी चुटकी लेते हुए मुझसे पूछा, “क्या बात है भैया… आज आप बड़े मूड में दिख रहे हैं।” मैंने बस मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हाँ, बस ऐसे ही।” वह मुस्कुराने लगा और मैं वापस अपने घर आ गया। 🙂

कल से मेरे दोस्त निशांत (वैसे तो मुझसे छोटा है, जूनियर है, लेकिन दोस्त से कम नहीं) को थोड़ा सर्दी-जुकाम हो गया है। शायद इस सर्दी-जुकाम ने उसके दिमाग के पेंच भी कुछ ढीले कर दिए हैं या फिर कुछ और लोचा हो गया है उसके साथ।… मेरी तरह बातें करने लगा है आजकल। दो दिनों से देख रहा हूँ कि वह मेरी तरह बहकी-बहकी बातें करता है, जैसे मौसम की खूबसूरती, बारिश की बातें… वगैरह।

आज जैसे ही उसके रूम में गया तो देखा कि बेचारा निशांत बड़ा टोपी वाला टी-शर्ट पहने कंबल में घुसा हुआ सर्दी से परेशान है। मैंने सोचा, चलो थोड़ी देर बैठ जाता हूँ इसी के कमरे में, बाद में फिर कुछ काम करूँगा। लेकिन इस निशांत ने तो क्या-क्या याद दिला दिया… बारिशों की बातें और पुराने दिनों की बातें। पता नहीं कहाँ से खाने-पीने की बातें भी उठ गईं। फिर क्या था, मैंने भी एक सुर में कह दिया, “भाई, मुझे तो कहीं भी नेनुआ की सब्जी + गरमा-गरम पराठे, या फिर बैगन-बड़ी-आलू की मिक्स सब्जी और गरमा-गरम पूरी मिल जाए, तो इस डिश पर चिकन तो क्या, दुनिया का कोई भी मेन्यू कुर्बान कर दूँ।” 🙂

नेनुआ की सब्जी मेरी सबसे पसंदीदा सब्जी में से है। (पटना वाले तो जानते होंगे नेनुआ की सब्जी का नाम, बाकियों का पता नहीं।) मेरे पूरे परिवार को पता है कि मेरी फेवरेट सब्जी यही है। नेनुआ की सब्जी चने के साथ बनी हुई… उफ्फ! इससे बेहतर और क्या हो सकता है। बचपन में एक बार एक्सपेरिमेंट जैसा कुछ किया था मैंने। माँ ने दोपहर के खाने में नेनुआ की सब्जी बनाई थी। जो सब्जी बच गई, उसे माँ ने फ्रिज में रख दिया। शाम को ऐसे ही माँ ने कहा, “नाश्ता कर लो, सब्जी थोड़ी बची हुई है, पराठे बना देती हूँ, तुम खा लेना।” माँ ने कहा था कि सब्जी को गर्म कर लेना, फिर खाना। आलस से मैंने सोचा, अब गर्म क्या करना सब्जी, ऐसे ही खा लूँगा। यकीन मानिए, फ्रिज में रखी हुई ठंडी नेनुआ की सब्जी और गरमा-गरम पराठे का जो स्वाद आया, दिल अंदर तक झूम उठा था। अब भी जब मौका मिलता है, तो यह कॉम्बिनेशन मैं ट्राई कर ही लेता हूँ। इस कॉम्बिनेशन में जो आनंद है, वह दुनिया के किसी भी डिश में नहीं। 🙂

डॉक्टर कहते होंगे कि बासी खाना नहीं खाना चाहिए, लेकिन मुझे जो स्वाद मिलता है इस खाने में, वह कहीं भी, किसी खाने में नहीं मिलता। आज भी जब घर जाता हूँ और रात के खाने में माँ नेनुआ की सब्जी या फिर चने की दाल बनाती हैं, तो मैं उनसे कह देता हूँ, “देखो, सब्जी बचा के फ्रिज में रख देना, मैं सुबह फिर से खाऊँगा।” 🙂

जलेबी तो सबको पसंद है… गरमा-गरम जलेबी किसे नहीं अच्छी लगती? आपके भी मुँह में पानी आ गया होगा जलेबी का नाम सुनते ही। मुझे भी जलेबी बहुत पसंद है… गरमा-गरम जलेबी और… बासी जलेबी भी। चौंक गए? जी हाँ! जब जलेबी घर में आती है, तो उस वक्त तो गरमा-गरम जलेबी खाते ही हैं, लेकिन उसके बाद बची हुई जलेबी को फ्रिज में रख देने के बाद शाम में वही बची हुई बासी जलेबी खाने का स्वाद भी लाजवाब होता है। 🙂 ये सब आजमाए हुए नुस्खे हैं, जो कभी फेल नहीं होते। 🙂

उफ्फ! क्या-क्या याद आ रहा है… घर में बनी बैगन की पकौड़ियाँ, आलू-चने के पकौड़े… बेसन का हलवा। शाम को अक्सर हमारे घर में माँ चूड़ा-बादाम-प्याज भून के देती थीं। अब भी जब जाता हूँ, तो आमतौर पर यही नाश्ता रहता है शाम का। सब याद आ रहा है आज… क्या-क्या लिखूँ? बहुत कुछ याद आ रहा है, बहुत कुछ लिखने को मन कर रहा है। मैं लिख तो दूँगा सारी बातें, लेकिन आप उतना पढ़ नहीं पाएँगे। इसलिए ये सब बातें किश्तों में ही करना सही रहेगा। 🙂

इस मुए निशांत ने भी आज कसम खा रखी है कि मुझे पुरानी यादों में डुबोकर ही दम लेगा। गाने भी तो ऐसे-ऐसे बजा रहा है तब से लैपटॉप पर। निशांत जिस कमरे में रहता है, वह बड़ा मस्त है। बड़ी-बड़ी खिड़कियों से हल्की ठंडी हवा आती रहती है। ऐसे दिलकश मौसम में कमरे की सारी खिड़कियाँ खुली हों, और हल्की हवा व बारिश में भीगी मिट्टी की सौंधी महक आ रही हो, तो बहुत अच्छा लगता है। बाहर बारिश हो रही है… बारिश में नाचने-भीगने का मन कर रहा है, लेकिन अभी तो बस इन पुरानी यादों को डायरी में लिखकर ही काम चला रहा हूँ। 🙂

वैसे निशांत भी आज शाम से कुछ रोमांटिक-सा, कुछ अजीब-सा हो गया है। वह इतने प्यारे-प्यारे गाने बजा रहा है लैपटॉप पर कि क्या कहूँ। कुछ देर पहले जब मैंने कहा, “चल, आज तेरे रूम में ही बैठेंगे, बस अच्छे-अच्छे गाने बजा।” निशांत ने पूछा, “कौन सा गाना सुनिएगा?” मैंने कहा, “तुम बिन का गाना हो, तो बजा दो, वरना कोई भी अच्छे हिन्दी फिल्मों के गाने बजा।” फिर क्या था, एक के बाद एक गीतों का सिलसिला शुरू हो गया। “तू ही रे…”, “कभी शाम ढले तो मेरे दिल में आ जाना…”, “करिए न करिए न कोई वादा किसी से करिए न…” ऐसे ही कई खूबसूरत गीत।

अभी यह पोस्ट लिखते-लिखते, कुछ सोचते-सोचते जैसे ही खिड़की के बाहर नज़र गई, कानों में एक और गीत की आवाज़ सुनाई दी, जिसे निशांत ने लैपटॉप पर बजाया था। मेरा सबसे पसंदीदा गीत… इस पागल लड़के ने मेरे दिल को एकदम से धड़का दिया। गाना था, “सावन बरसे, तरसे मन…” मैंने लगभग चिल्लाते हुए कहा, “अबे कमीने, आज जान लेकर रहोगे तुम! क्यों ऐसा जुल्म कर रहे हो मेरे पर? ऐसे-ऐसे गाने आज सुना रहे हो तुम। कसम से, आज तो तुम्हारा क़त्ल कर दूँगा!”

खैर, उसके ऊपर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ। वह ऐसे ही कई जानलेवा गीत लैपटॉप पर बजाता रहा और मुझे जलाता रहा। 🙂 फ़िलहाल तो आप भी सुन लीजिए ये गीत… बहुत प्यारा और खूबसूरत है।

फिर भी, निशांत अपनी ही धुन में मस्त था और गाने बजाए जा रहा था। मैं भी उसकी इस आदत पर मुस्कुराए बिना नहीं रह पाया। उस पल, बारिश, गाने, और बीते दिनों की यादों का एक अलग ही जादू सा छा गया था। खिड़की से आती ठंडी हवा और निशांत के लैपटॉप पर बजते गीतों ने पूरे कमरे को एक सुकून भरी अनुभूति से भर दिया।

बारिश का मौसम वैसे भी मुझे हमेशा से बहुत भाता है। बचपन में बारिश होते ही मैं अक्सर छत पर चला जाता था, बिना किसी परवाह के। माँ की डाँट और पापा की चिंता, दोनों से बचते हुए, मैं बारिश की उन बूँदों में अपनी दुनिया खोजता था। कभी दोस्तों के साथ गली में कागज की नावें तैराने का आनंद, तो कभी अकेले बारिश में भीगते हुए अपने ही ख्यालों में खो जाने का सुख।

आज जब भी बारिश होती है, मुझे वो दिन याद आ जाते हैं। अब तो ज़िम्मेदारियाँ इतनी बढ़ गई हैं कि बारिश में भीगने का मौका भी कम ही मिलता है। लेकिन दिल के किसी कोने में वो बच्चा अभी भी जिंदा है, जो बारिश में दौड़ने और भीगने का इंतजार करता है।

अभी थोड़ी देर पहले निशांत ने फिर से एक और गीत बजा दिया, “भीगी भीगी रातों में…“। मैंने उसे चिढ़ाते हुए कहा, “भाई, ये बारिश और रोमांटिक गानों का कॉम्बिनेशन जानलेवा है।” उसने हँसते हुए कहा, “तो आज बारिश और गानों के साथ जीने दो न, कल फिर वही ऑफिस की भागदौड़ शुरू हो जाएगी।” उसकी इस बात में सचमुच गहराई थी।

हम दोनों कुछ देर खिड़की के पास बैठकर बारिश को देखते रहे। चाय की गर्म भाप और खिड़की से आती ठंडी हवा, दोनों ने उस पल को और खास बना दिया। निशांत की बातें, गाने, और बारिश ने मुझे मेरी पुरानी यादों में डुबो दिया था।

… और अब रात गहराती जा रही है।
बारिश की बूँदों की आवाज़, कमरे के बाहर की सन्नाटे को और खूबसूरत बना रही है। लग रहा है कि कागज और कलम उठाकर सब कुछ लिख डालूँ, लेकिन हर याद को शब्दों में पिरोना आसान नहीं।

कल फिर ऑफिस जाना है, वही रोज़मर्रा की ज़िंदगी। लेकिन आज की ये शाम और निशांत के साथ बिताए पल हमेशा याद रहेंगे। कभी-कभी ज़िंदगी की ये छोटी-छोटी खुशियाँ ही हमें बड़ा सुकून देती हैं।

बारिश के साथ-साथ यादों का सिलसिला भी थमने का नाम नहीं ले रहा। निशांत के कमरे में खिड़की के पास बैठकर जब बारिश को देखते हुए गाने सुन रहा था, तो मन में बीते दिनों की कई यादें उभर आईं।

मुझे याद है, जब मैं पटना में था, तो बारिश के दिनों का अपना एक अलग ही आनंद था। घर की छत पर बैठकर, बारिश की बूंदों को हाथों में समेटने का मज़ा और माँ की बनाई पकौड़ियों की खुशबू पूरे माहौल को खास बना देती थी। बारिश के साथ घर के बाहर की मिट्टी से उठती सौंधी महक, चाय की चुस्की और पूरे परिवार का साथ, जैसे हर चीज़ बस परफेक्ट हो।

अब वो दिन तो नहीं रहे, लेकिन निशांत के कमरे में बैठकर, इन गानों और बारिश ने मुझे फिर उन्हीं दिनों की ओर लौटा दिया। निशांत ने अभी-अभी एक और गाना बजा दिया, “रिमझिम गिरे सावन…“। इस गाने की हर एक लाइन जैसे दिल पर दस्तक दे रही थी। मैंने उससे कहा, “भाई, तू तो आज पूरा मूड बना देगा।” उसने मुस्कुराते हुए कहा, “मौसम ही ऐसा है।”

कभी-कभी सोचता हूँ कि ज़िंदगी की असली खुशियाँ इन पलों में छिपी होती हैं। रोज़मर्रा की भागदौड़ में हम इन्हें नज़रअंदाज कर देते हैं। लेकिन ये छोटे-छोटे पल ही तो हमारी ज़िंदगी को खूबसूरत बनाते हैं।

आज की ये शाम बहुत खास थी।
बारिश, गाने, और यादों ने इस शाम को एक जादुई अहसास से भर दिया। निशांत के कमरे में बैठकर, खिड़की के बाहर देखते हुए, मैंने खुद से वादा किया कि अब से ऐसे छोटे-छोटे पलों को ज्यादा जीने की कोशिश करूंगा।

शायद ये मौसम और निशांत के साथ बिताए ये पल, मुझे हमेशा याद रहेंगे। ज़िंदगी के इस सफर में ऐसी ही शामें हमें ठहरकर सोचने का मौका देती हैं कि हम कहाँ जा रहे हैं और क्या मिस कर रहे हैं।

आज की रात बस इतनी ही। बारिश अब भी जारी है, और मन कहीं न कहीं पुराने दिनों में खोया हुआ है। कल क्या होगा, ये पता नहीं, लेकिन आज की इस रात ने मुझे फिर से ज़िंदगी का असली मतलब समझा दिया।

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